Wednesday 11 September 2013

ईँसानियत - सबसे बड़ा धर्म

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मैँ कई दिनो से देख रहा हूँ। फेसबूक जैसी सोशल नेटवर्किँग वेबसाईट्स पर कुछ लोगोने किसी एक मज़हब के नाम से फेसबूक पेज या प्रोफाईल बनाये हूये है और अन्य मज़हब के बारे मेँ बुराई किये हुये स्टेटस और फोटो अपलोड कर मित्रोँ को टॅग करते है। ऐसे कई सारे फेसबूक फोटो टॅग मुझे भी प्राप्त हुये है जिनपर गौर करने के बाद मैँ कुछ लिखना चाहता हूँ तथा ईस पोस्ट के जरीये ऐसे लोगो से कुछ पुछना भी चाहता हूँ।

अबतक ऐसे जितने भी फोटो मेरे फेसबूक अकाउंट पर टॅग किये गये उनमे सिर्फ 'ईस्लाम' कि बुराई कि हुई है तथा ऐसी शर्मनाक हरकत करनेवाले मेरे 'हिँदु' भाई ही है ये जानकर तो मुझे ही शर्मिँदगी महसूस होती है। 'हिँदू' मज़हब के पवित्र नाम से पेज बनाकर 'ईस्लाम' या किसी एक मज़हब को टार्गेट कर उनकी बुराई करनेवाले और ऐसी हरकते करके खुद को 'स्वाभिमानी हिँदू' बतानेवाले या धर्म के नाम पर दुसरे मज़हब के स्वाभिमान पर सवाल उठानेवाले नाटकी लोगो से मै कुछ पुछना चाहता हूँ।

  • क्या विश्व मे सिर्फ 2 ही मज़हब है? क्या सिर्फ 'ईस्लाम' बूरा/झूटा/असत्य पर आधारित है? क्या सिर्फ 'ईस्लाम' मेँ कमजोरीयाँ है? क्या 'हिँदू' धर्म मे कुछ भी बुराई/कमजोरी नही है? क्या सिर्फ ईस तरह की फोटो अपलोड करने वाले 'हिँदू' मज़हब से संबंधी फेसबूक पेजेस के अॅडमिनर्स और वे फोटो टॅग करनेवालोँ को ही 'हिँदू' मजहब से प्यार है? क्या सिर्फ हिँदुओँ को ही स्वाभिमान है? किसी ने 'हिँदु' मज़हब के बारे मे ऐसी पोस्ट अपलोड करने पर क्या मेरे हिँदू भाई बर्दाश्त करेँगे? क्या 'ईस्लाम' का कोई स्वाभिमान नही है? अगर आप अपने मज़हब को ईतना चाहते हो तो बाकी मज़हब वालोँ को अपने मजहब से प्यार/स्वाभिमान नही होगा?
मैँ भी हिँदू हूँ। हम भी अपने मज़हब से प्यार करते है, हमे भी अपने मजहब पर स्वाभिमान है। पर ईसका मतलब ये तो नही की उसे जताने के लिये हम दुसरे अन्य किसी भी मज़हब को नीचा दिखाते फिरे। क्यूँ की हमारे जैसा ही सभी धर्मोँ को स्वाभीमान है। और जब हम अपने मज़हब के प्रती अन्य धर्मियोँसे आदर-सम्मान की चाह रखते है तो उनके धर्मोँ का सम्मान करना भी हमारा कर्तव्य बनता है। और खुद को अस्सल हिँदू माननेवालोँ को तो ये भी पता होना चाहिये की अन्य धर्मोँ का सम्मान करने मे ही सच्ची शालीनता है।

मै ये हरगीज नही कहता कि ईस तरह के पेजेस मत बनाओ! किसी धर्म का प्रसार करने के लिये ये जरूर बनाने चाहिये! ईस बात के लिये हिँदुस्तान के संविधान कि Section 25-28 : Fundamental Right of Religion's Freedom मे सभी हिँदुस्तानियोँ को पसंदिदा मज़हब को अपनाने/पालन करने एवं प्रसार करने का संवैधानिक अधिकार भी दिया गया है। अत: फेसबूक, ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किँग/मायक्रोब्लॉगिँग साईट्स के माध्यम से जरूर अपने मज़हब का प्रसार करना चाहिये; लेकिन हमे ये भी याद रखना चाहिये कि जिस संविधान ने हमे हमारे धर्म का प्रसार करने का अधिकार दिया उसीके Section 15 के तहत धर्म के बारे मे भेद करने को ईजाजत नही दी गई है एवं 'भारतीय दंड संहिता दफा 295-298' (Indian Penal Code 295-298) के अनुसार किसी भी मजहब या धर्म के लोगोँ की धार्मिक भावनाओँ को किसी भी माध्यम से ठेस पहूँचानेवाले कार्य करनेपर उसे गंभीर जुर्म मानकर 1 साल कैद या/और फाईन हो सकती है।

मित्रो! हो सकता है... कई लोग मेरे ईस पोस्ट से राजी ना हो या मैने हिँदू होकर ईस्लाम की बाजू ली ईसलिये मेरा विरोध करे। उन्हे मै बताना चाहूँगा की मैने ईस्लाम की नही बल्की विश्व के सबसे पहले एवं बड़े मजहब 'ईँसानियत' की बाजू ली... क्यूँ की मैँ मानता हूँ की...

"संसार मेँ अगर कोई धर्म है तो बस् एकही है... और उस धर्म (मजहब) का नाम है मानवता/ईँसानियत (Humanity)। पर इंसान ने उस एक धर्म को हिँदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी ऐसा बाँटकर एक धरती का भारत, पाक, ईरान एक धर्मग्रंथ का रामायण, महाभारत, कुरआन और एक धर्मस्थल का मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा ऐसा बटवारा किया है।"

"पर मै कभी-कभी अपने आपसे पुछता हूँ की जब उस भगवान/अल्लाह/ईसा/ईश्वर या संसार ने इंसान मे कभी कोई भेद नही किया तो इंसान को किसने हक दिया इंसान-इंसान मेँ भेद करने का?" खैर...

"मैँ तो मानता हूँ कि हिँदू एवं मुस्लिम एक ही है कहूँ तो अचंबा नही होना चाहीये। क्युँकी सोचनेवाली बात है की जहाँ मुसलमान भाई-बहनोँ के पवित्र त्योहार RAMzan Eid की शुरूवात हम हिँदुओँ के भगवान प्रभू श्री RAM के नाम से होती है वहीँ हम हिँदुओँ के सबसे बड़े त्योहार diwALI का समापन मुसलमान प्रेषित ALI के नाम से होता है। फिर मैँ पुछता हूँ जब प्रभू श्रीराम के नाम के बिना रमज़ान ईद एवं अली के नाम के बिना दिवाली नहीँ मनाई जा सकती तो हिँदू एवं मुस्लिम मेँ भेद कैसे किया जा सकता है?

अंत मे मै यही कहना चाहूँगा की मेरा मकसद किसी मज़हब की धार्मिक भावनाओँको ठेस पहूँचाने का न होकर ये संदेश देने के लिये है कि- जो किसी भी धर्म के लोग अपने धर्म के प्रती अपना स्वाभिमान जताने के लिये दुसरे धर्म/धर्मोँ का अनादर करने मेँ जुटे होते हैँ भगवान/अल्लाह उनको सद्बुद्धी दे। और वो जल्द ईस तरह की दुसरे धर्मियोँ की धार्मिक भावनाओँ को ठेस पहुँचानेवाले स्टेटस/फोटोज अपलोड करना छोड़कर अपने धर्म के साथ-साथ दुसरे धर्म का भी सम्मान करने लगे।


लेखक: RDH (राजेश डी. हजारे)
-गोँदिया जिल्हाध्यक्ष-अ. भा. मराठी साहित्य परिषद, पुणे
तिथी-29 अक्तुबर 2012 आमगांव साधार: ईँसानियत-सबसे बड़ा धर्म

3 comments:

  1. khupach chan lihlele aahe ..........jya vishyavar sahjasahji konihi likhan karat nahi to atishay sanwendanshil vishay hatalun aapan kharya arthane sarv dharm sambhav v jajwal rashtrbhaktichanyay denyache kam kele aahe

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  2. Chandrashekhar Bhosale28 September 2013 at 17:31

    .... तर एक तीळ सातच नव्हे तर सत्तर जणांनी वाटून खावा... ही शिकवण रुजली की कोणत्याच धर्म किंवा धार्मिक शिक्षणाची गरज नाही... नाही का...!

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  3. Mla tr ekch dharm mahit ahe to manje nanvta dharm.

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